Monday, October 30, 2017

हंजू

तेरी यादां दे जो हंजू ने
कुझ पल ने, ते कुझ मोती
पल ते बह के सुख जांदे ने
बाकी गले विच रुक जांदे ने
बन के हार मोतियाँ वाले
डिगदे डिगदे टुट जांदे ने

तेरे खत दे जो अक्खर ने
कागज़ ते ओ कलम दी लेखी
कागज़ जेड़ा दिल वे मेरा
कलम जो तेरी तेग दे वर्गां
चलदी चलदी टुट जांदी है
दिल विच कर के चोभ बथेरा

सानु रोज़ जलावण वाले
तेरा वी कुझ जलदा होणा
साडी ते हुई राख दी ढेरी
वजूद तेरा हुण बलदा होणा

Chahta hun


फिर आज कुछ दर्द जगाना चाहता हूँ
राग ऐ रंज फिरसे मैं गाना चाहता हूँ

चलता रहा हूँ बेख़ौफ़, बोहोत बेफिक्री में
थाम के दिल दो पल, अब घबराना चाहता हूँ

मुद्दतों से चल रही, सीने में ये बेदखल
धड़कनों को दो घडी रुकवाना चाहता हूँ

डर है कहीं ना हो, अंजाम फिर तर्क ऐ वफ़ा
फिर से दीवानगी, जो परवान चढ़ाना चाहता हूँ

वक़्त ऐ रुखसत पे भी तेरा ही दीदार हो
मौत से मैं ज़ीस्त नज़राना चाहता हूँ

चाहता हूँ बोहोत कुछ इस शर्त पे सब छोड़ दूँ
भर के आगोश में तुझको, फ़ना हो जाना चाहता हूँ

Saal dar saal waqt guzarta hai bazm me
Khayal dar khayal hum guzar rahe hain nazm me

Yun to Firaaq e aaftab rahi aaj ki subah

Jaane Kis aas me din ye roshan hua jata hai

अंधेरों का तकाज़ा है
हो चराग़ाँ कू ऐ क़ातिल में
सब क़त्ल होने उमड़े है
कोई जीनेवाला नहीं आया

मुसलसल गिरता है जज़्ब
फटे गिरेबानों से
कब से थामे खड़े है
कोई पीने वाला नहीं आया

दस्तूर
हवा के झोंकों
का, आंधी अंधड़ तूफांँ
लाए, क़सूर बेहूदा दिल का
है,  जा कर के सब से टकराए

हम कब ना थे मयस्सर, तेरा इंतज़ार करते
शब भर यूँ आहें भर के दिन बेक़रार होता
नशा ए आरज़ू पे बादा-ख़वार भी हम
ग़म ए यार गर जो मिलता, वो क्या ख़ुमार
होता